KRISHNA GOPAL AYURVED BHAWAN, KALERA
AVIPATTIKAR CHURN अविपत्तिकर चूर्ण
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अविपत्तिकर चूर्ण के सेवन से अम्लपित्त(एसिडिटी) तथा अम्लपित से उत्पन्न उदरशूल(पेटदर्द), अग्निमांद्य, वातनाड़ियों में शूल, अर्श(बवासीर), प्रमेह, मूत्राघात और मूत्राश्मरी का नाश होता है। केवल दूध और भात का भोजन करने से जल्दी लाभ होता है।
यह चूर्ण अम्लपित्त रोग में विशेष व्यवहृत होता है। अम्लपित्त होने पर छाती में जलन होती रहती है, रोग अधिक बढ़ने पर उबाक और वमन भी होती रहती है, वमन खट्टी और जलती हुई होती है।
वमन होने पर कण्ठ में दाह होता है और नेत्रों में जल आ जाता है। इस विकार में अपचन होने या रोग जीर्ण होने पर आमाशय पित्त अत्यधिक बढ़ जाने से सुबह भी खट्टी डकारें आती रहें और वमन होती रहें, तब अविपत्तिकर चूर्ण का सेवन शीतल जल या नारियल के जल के साथ कराया जाता है, जिससे आमाशय का पित्त आँतों में चला जाता है।
इस चूर्ण में निसोत मिलाया है, जिससे यह कुछ विरेचन गुण भी दर्शाता है और आमाशय के भीतर संगृहीत पित्त को फेंक देता है। यदि विरेचन गुण को अति कम करना हो, तो आचायों के कहे अनुसार चूर्ण भोजन के पहले और भोजन के अन्त में थोड़ी-थोड़ी मात्रा में घी और शहद के साथ देना चाहिए।
सूचना-यदि आँतों में शोध हो, ऊपर दबाने पर वेदना होती हो तो इस चूर्ण का सेवन नहीं करना चाहिये, अथवा घी, शहद से करना चाहिये। आमाशय नलिका से पित्त की निकाल देना चाहिये।
वृक्क दाह होने पर रक्त में मूत्र-विष की वृद्धि होती है। फिर नेत्र और मुखमण्डलपर सूजन उत्पन्न होती है। देह कमजोर और निस्तेज हो जाती है, आलस्य की वृद्धि होती है। दृष्टि मन्द होती है, रक्त की प्रतिक्रिया अम्ल होती है। आमाशय में पित्त तेज हो जाता है। ऐसी स्थिति में प्रायः मलावरोध भी दुःख देता रहता है, इस मलावरोध को दूरकर उदर को शुद्ध करने के लिये बिडनमक मिश्रित इस चूर्ण का उपयोग किया जाता है।
इसके अतिरिक्त आमवात और रक्त को प्रतिक्रिया अम्ल होने से उत्पन्न संधिवात, पक्षाघात, उदरशूल, पित्तप्रकोप उन्माद, रक्तदबाव बुद्धि आदि रोगों में विरेचन की आवश्यकता होने पर भी इस चूर्ण का उपयोग किया जाता है।
विधि-सौंठ, कालीमिर्च, पीपल, हरड़, बहेडा, आंवला, नागरमोथा, बायविडंग, छोटी इलायची के दाने और तेजपात सब एक- एक तोला लौंग १० तोले, निसौत ४० तोसे और मिश्री ६० ताले लें। इन सबको मिला कूटकर चूर्ण करें। (रसेन्द्र चिन्तामणि)
मात्रा-4-6 ग्राम। भोजन के पहले, ठण्डे जल के साथ लेवें।
(चिकित्सक के परामर्श अनुसार)
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