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आचार्य आयुर्वेदा

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Hemant Kumar Mar 9, 2024

आयुर्वेद में रसों का वर्णन: छह प्रमुख रसों की समीक्षा

रसाः स्वादुम्ललवणतिक्तोषणकषायकाः ।। १४ ।।

षड द्रव्यमाश्रितास्ते च यथापूर्व बलावहाः ।

रसों का वर्णन- आयुर्वेद शास्त्र में रसों की संख्या छः है:

  1. स्वादु (मीठा)
  2. अम्ल (खट्टा)
  3. लवण (नमकीन)
  4. तिक्त (नीम तथा चिरायता आदि)
  5. ऊषण (कटु- कालीमिर्च आदि)
  6. कषाय (कसैला- हरीतकी आदि)

ये सभी रस भिन्न-भिन्न द्रव्यों में पाये जाते हैं। ये रस अंत की ओर से आगे की ओर को बलवर्धक होते हैं, अर्थात् मधुर रस सबसे अधिक बलवर्धक होता है और इसके बाद सभी रस उत्तरोत्तर बलनाशक होते हैं।

वक्तव्य:

रसना (जीभ ) के द्वारा जिसका रसास्वादन किया जाता है अथवा जो रसना का विषय है, उसे 'रस' कहते हैं। अतएव चरक ने कहा है- 'रसनाऽर्थो रसः' (च.सू. १/६४) तथा 'रसो निपाते द्रव्याणाम्। (च.सू. २६/६६) अर्थात् किसी द्रव्य का जब जीभ से सम्बन्ध होता है तब उसके रस की प्रतीति होती है कि यह मीठा, खट्ता आदि कैसा रस है? रसों के विशेष परिचय के लिए देखें- अ. ह्र. सू. अध्याय १० सम्पूर्ण।

साभार: अष्टांगह्र्दय सूत्रस्थानम पृष्ठ-१२