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आचार्य आयुर्वेदा

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Hemant Kumar Apr 22, 2024

Ayurvedic Dental Care: Ancient Practices for Oral Hygiene

शरीरचिन्तां निर्वर्त्य कृतशौचविधिस्ततः ।। १ ।। 

॥ अर्कन्यग्रोधखदिरकरञ्जककुभादिजम् । 

प्रातर्भुक्त्वा च मृद्वग्रं कषायकटुतिक्तकम् ॥ २ ॥ 

कनीन्यग्रसमस्थौल्यं प्रगुणं द्वादशाङ्गुलम् । 

भक्षयेद्दन्तपवनं दन्तमांसान्यबाधयन् ॥ ३ ॥ 

 

दतवन(दातुन) का विधान—उठते ही शरीर की चिन्ता से निवृत्त होकर अर्थात् मैं उठने योग्य हूँ या नहीं—ऐसा विचार करके यदि वह अपने को दिनचर्या करने योग्य समझे तब वह शौचविधि (मल-मूत्र त्याग कर मल-मूत्र स्थानों को मिट्टी, जल आदि से शुद्ध करने के बाद अर्क, बरगद, खैर या बबूल, करज ( डिठौरी), ककुभ (अर्जुन ) आदि वृक्षों में से किसी की पतली शाखा को लेकर दतवन (दातौन ) करे।

 दतवन करने के दो समय होते हैं- १. प्रातः काल और २. भोजन कर लेने के बाद इससे मुख की मलिनता दूर होती है और भोजन करने के बाद दांतों या मसूड़ों में फंसे हुए अन्नकण आदि निकल जाते हैं। 

दतवन(दातुन)करने की विधि - दतवन के अगले भाग को दाँतों से चबाकर अथवा कूटकर मुलायम कर लेना चाहिए, नहीं तो उसकी रगड़ मसूड़ों में लग सकती है। इस (दतवन) का रस कसैला (सैर या बबूल का जैसा) या कटु (तेजबल या तिमूर का जैसा) अथवा तिक्त (नीम का जैसा) होना चाहिए। इसकी मोटाई कनीनिका (सबसे छोटी पांचवीं अंगुली) के समान तथा लम्बाई बारह अंगुल होनी चाहिए। इस प्रकार की दतवन को लेकर दाँतों पर इस प्रकार घिसें जिससे मसूड़ों पर न लगे और दांत स्वच्छ हो जायें

।। १-३ ।। नाद्यादजीर्णवमथुश्वासकासज्वरार्दिती। तृष्णास्यपाकहुन्नेत्रशिरः कर्णामयी च तत् ॥ ४ ॥ 

 

दतवन का निषेध- अजीर्ण होने पर, छर्दीरोग में, श्वासरोग में, कासरोग में, ज्वररोग में, अर्दित ( मुख का लकवा) रोग में, तृषारोग में, मुखपाकरोग में, हृदयरोग में, नेत्ररोग में, शिरोरोग में तथा कर्णरोग में दतवन न करें ॥ ४॥ 

वक्तव्य- दतवन करने की क्रिया को आयुर्वेदशास्त्र में दो नामों से कहा गया है—

 १. दन्तपवन और २. दन्तधवन। 

इनमें 'पवन' का अर्थ है-पवित्र करना और 'धवन' का अर्थ है——धोना या साफ करना। 

अष्टांगसंग्रह-सू. ३२०-२२ में निषिद्ध दतवनों का परिगणन इस प्रकार विस्तार से किया है—१. लिसोड़ा, २. रीठा, ३. बहेड़ा, ४. धव, ५. करीर, ६. बबूल, ७. सम्भालू, ८. सहजन, ९. लोध, १०. तेन्दू, ११. कचनार, १२. शमी, १३. पीलू, १४. पीपल, १५. इंगुदी (हिंगोट). १६. गूगल, १७. फरहद, १८. इमली, १९. मोच, २०. सफेद शाल्मली, २१. सेमल तथा २२. शष ( सनई) की दतवन न करे। इनके अतिरिक्त जिन वृक्षों का रस मीठा, खट्टा अथवा नमकीन हो उनकी भी दतवन न करे। जो दतवन सूखी, खोखली, दुर्गन्धयुक्त तथा लसीली हो उसका भी किया है और पलाश तथा विजयसार की दतवन एवं खड़ाऊ का परित्याग करे। 

With thanks from #आयुर्वेद #अष्टांगहृदय पृष्ठ-२६,२७

 

"Having freed oneself from bodily concerns, the ritual of cleanliness is performed." (Verse 1)

"In the morning, having eaten tender branches of trees like Arka, Banyan, Khadira, Karanja, and Kumbha, one should perform dental care using astringent, bitter, and pungent substances." (Verse 2)

"The brush should be of the size of twelve fingers, and by brushing the teeth, one should remove particles of food stuck between the teeth and prevent diseases of teeth and gums." (Verse 3)

"Avoid dental care in conditions such as indigestion, vomiting, respiratory disorders, cough, fever, facial paralysis, thirst, eye diseases, head ailments, and ear diseases." (Verse 4)

"Instructions: Dental care is referred to in Ayurveda by two names: Dantapavan and Dantadhavan. As per the Ashtanga Hridaya (Ayurvedic text), certain substances should not be used for dental care, including Lisoda, Reetha, Baheda, Dhav, Karir, Babool, Sambhalu, Sahjan, Lodh, Tendu, Kachnar, Shammi, Peelu, Pipal, Ingudi (Hingot), Guggul, Farhad, Imli, Moch, Safed Shalmali, Semal, and Shash (Sanai)."

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