अर्धशक्ति का विवरण और उसका महत्व - आयुर्वेद से संबंधित जानकारी
अर्धशक्त्या निषेव्यस्तु बलिभिः स्निग्धभोजिभिः ।। ११
शीतकाले वसन्ते च, मन्दमेव ततोऽन्यदा।
अर्धशक्ति तथा काल निर्देश–
बलवान् तथा स्निग्ध ( घी-तेल आदि से बने हुए तथा बादाम काजू आदि) पदार्थों को खाने वाले मनुष्य शीतकाल (हेमन्त शिशिर ऋतु) में एवं वसन्त ऋतु में आधी शक्ति भर व्यायाम करें, इससे अन्य ऋतुओं में और भी कम व्यायाम करें ॥ ११ ॥
वक्तव्य-
अर्धशक्ति का परिचय–
व्यायाम करते-करते हृदयस्थान में स्थित वायु जब मुख की ओर आने लगे अर्थात् जब व्यायाम करने वाला हॉफता हुआ मुख से सांस लेने लगे तो यह बलार्ध या अर्धशक्ति का लक्षण है। इस स्थिति में यह सोच लेना चाहिए कि इस समय आधा बल समाप्त हो चुका है। देखें सु.चि. २४/४७।
और लक्षण भी देखें—–
कांखों में, माथे पर, नासिका के ऊपर, हाथों-पैरों तथा सभी सन्धियों में पसीना आने लगे और मुख सूखने लगे तब समझना चाहिए कि आधी शक्ति समाप्त हो चुकी है। उस समय व्यायाम करना छोड़ दे। स्वयं बैठकर अपने शरीर के अवयवों को मसलें। सर्दी के दिनों में अर्धशक्ति पर्यन्त व्यायाम करने की शास्त्र की आज्ञा है, उसके बाद और भी कम व्यायाम करना चाहिए, यही 'मन्दमेव' शब्द का अभिप्राय है। #आयुर्वेद #अष्टांगह्र्दय