KRISHNA GOPAL AYURVED BHAWAN, KALERA

BASANTKUSUMAKAR RAS बसन्तकुसुमाकर रस

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वसन्तकुसुमाकर रस अंडकोष, हृदय, मस्तिष्क, पचनेन्द्रिय, जननेन्द्रिय और फुफ्फुसों के लिये पौष्टिक, वीर्यवर्द्धक, कामोत्तेजक, मधुमेहघ्न(शुगर) और मानसिक निर्बलता का नाश करने वाला है। 
जीर्ण मधुमेह(शुगर) और उसके उपद्रव रूप ह्रदयविकार, श्वास, कास, इन्द्रिय दौर्बल्य आदि एवं प्रमेहपिटिका (अदीठ Carbuncle) शुक्रक्षय के पश्चात् की निर्बलता, जरा सा विचार आते ही शुक्रपात होना, नपुसंकता, मूत्रपिण्ड की विकृति, स्मरण शक्ति मन्द होना, भ्रम, निद्रानाश, जीर्णरक्तपित्त, हृदय की निर्बलता, शुष्ककास, थोड़ा परिश्रम होने पर साँस भर जाना, वृद्धावस्था श्वास, कास, हृदय या यकृत् की विकृति, जीर्ण सर्वांग शोध, स्वियों के नूतन प्रदर, जीर्ण श्वेतप्रदर, सबको शमन करने में यह उपयोगी है। 

यह रस मधुमेह(शुगर) में अत्यन्त हितकर है। अति व्यवाय (स्त्रीसेवन) और ओजक्षय से होने वाले जोर्ण मधुमेह में निर्बलता, मानसिक दौर्बल्य; दिन-प्रतिदिन बढ़ने वाला शब्द-स्पर्श आदि गुणों की ग्राहक इन्द्रिय शक्ति का क्षय; जोर की आवाज और अधिक प्रकाश का सहन न होना, बात-बात में क्रोध उत्पन्न होना; अनिश्चित वृत्ति; विचार करने की शक्ति कम हो जाना, इन्द्रिय शैथिल्य इत्यादि लक्षण प्रतीत होते हों, तो वसन्कुसुमाकर अत्यन्त हितकर है। 

मधुमेह से उत्पन्न उपद्रव ह्र्दयविकार, श्वास, कास, प्रमेहपिटिका, मूर्च्छा, संन्यास आदि को भी दूर करता है। प्रमेहपिटिका होने पर शिलाजतु के साथ देना चाहिये। मधुमेह के अन्त में उत्पन्न संन्यास और शक्तिपात को दूर करने के लिये यह रस अमृत रूप है।

अति व्यवायशोषी के मनोदौर्बल्य, इन्द्रियशैथिल्य और शारीरिक निर्बलता बढ़ने पर स्त्री दर्शन या आवाज मात्र से मन में विकृति, शरीर निस्तेज हो जाना, जिसमें जननेन्द्रिय बिल्कुल शिथिल हो जाना आदि लक्षण होते हैं, उनमें यह अत्यन्त लाभदायक है। 
अत्यन्त व्यवाय से हृदयदौर्बल्य, शुष्क त्रासदायक कास, श्वास, थोड़े परिश्रम में श्वास भर जाना, धमनी अथवा हत्पटलका विकार, क्वचित् मूत्रपिण्ड का विकार, इन सब पर यह उपयोगी है। 

अधिक मगज के श्रम से शिरदर्द और चक्कर आकर मानसिक निर्बलता बढ़ गई हो; तथा मस्तिष्क, वातवाहिनियां और इनके केन्द्र स्थानों की विकृति के लक्षण विचार करने पर मन का गुम हो जाना, बाहर की आवाज सहन न होना; व्याकुलता बनी रहना, विचार करने में वास होना, आदि प्रतीत होते हों; परन्तु रक्तदबाव(हाई बीपी) न बढ़ा हो, तो यह रसायन हितकारक है। अनुपान रूप से त्रिजात का क्वाथ या पेठे का रस देना चाहिये। इन लक्षणों के साथ निद्रानाश हो; और निद्रानाश का हेतु विविध विचार कल्पना हो, तो उसे भी यह दूर करता है।

वसन्तकुसुमाकर का परिणाम अण्डकोष पर बल्य होता है, अतः यह उत्तम वृष्य(वीर्यवर्द्धक) औषध है। छोटी आयु से दुष्ट आदत हो जाने या युवावस्था में अति व्यवाय(अति स्त्रीगमन) आदि कारणों से उत्पन्न इन्द्रिय शैथिल्य, मन में कामविकार उत्पन्न होने के साथ वीर्यस्खलन, स्त्री सम्बन्धी विचार आने अथवा नूपुर या कंकण की आवाज सुनने मात्र से स्खलन आदि लक्षण हों, या नपुन्सकता आई हो, तो यह अति उपयोगी है।

संक्षेप में यह रस बल्य, वृष्य(वीर्यवर्धक), मधुमेहघ्न(शुगर), मानसिक निर्बलता तथा वातवहमण्डल, सहस्रार और वातवाहिनी केन्द्र की अशक्ति को दूर करने वाला है।  (औ. गु.प.शा. के आधार से) 

सूचना- वसन्तकुसुमाकर अत्यन्त कामोत्तेजक होने से बढ़ी हुई कामोत्तेजना वाले को नहीं देना चाहिये, अन्यथा उसके मन पर बहुत खराब असर होकर शुक्रक्षय अधिक करने की प्रवृत्ति हो जायेगी।

घटक द्रव्य:- प्रवाल पिष्टी, रससिन्दूर, मुक्ता पिष्टी, अभ्रक भस्म, स्वर्ण भस्म, रौप्य भस्म, लौह भस्म, नाग भस्म, केशर, अम्बर शतपुटी और वंग भस्म
भावना द्रव्य:- अडूसे का रस, हल्दी का क्वाथ, ईख का रस, कमल के फूलों का रस, मालती पुष्प का रस, गाय का दुग्ध, केले के तने का रस, कस्तूरी और चन्दन।

मात्रा:- 125mg से 375mg दूध-मिश्री, मलाई या मक्खन-मिश्री के साथ (चिकित्सक के परामर्श अनुसार)


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